रविवार, 11 मई 2008

खेतों में जहर की फसल - चंद्रमोहन कल्ला

जोधपुर. सेहत मंद होने के लिए आजकल लोग जो सब्जियां खा रहे हैं, उनका उत्पादन नीम हकीमी नुस्खों से होने लगा है। कम समय में अधिक पैदावार से मुनाफा कमाने के लिए किसानों में फैले संक्रमण से यह मर्ज लाइलाज हो रहा है। नीम हकीमी नुस्खों की सीढ़ी से हो रही खेती से भावी पीढ़ी का स्वास्थ्य चपेट में आने लगा है। कृषि विशेषज्ञों के एक दल की ओर से हाल ही में किए गए सर्वे में कीट नाशकों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत असर की चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।
फसल बोने से पकने तक रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से पैदा हुई सब्जियां सेवन करने वालों के शरीर में जहर भर रही हैं। हालत ये है कि आसपास के कस्बों और शहरों में कीटनाशक की खरीद के लिए आने वाले किसानों को विक्रेता ज्यादातर वहीं कीटनाशक देता है जो जल्द असर दिखाए और दुकानदार को भी अधिक मुनाफा हो। जब किसान अपने खेत में फसल को लगी बीमारी के लक्षण बताकर कीटनाशक मांगता है तो कई बार व्यापारी समान रोग के लिए एक से अधिक कीट नाशक थमा देते हैं।
भावी पीढ़ी के लिए खतरे की घंटी
कीटनाशकों और उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग न केवल वर्तमान बल्कि आने वाली पीढियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। कीट नष्ट करने वाला रसायनिक जहर के लिए जमीन से बाहर जाने का रास्ता केवल फसलों के जरिए ही होता है । पश्चिमी राजस्थान जैसे शुष्क इलाके में जहां पर्याप्त मात्रा में जल निकासी विकसित नहीं है, वहां खेतों में इनकी मात्रा का लगातार बढ़ना खतरनाक है।
टमाटर भिंडी,लौकी और कुष्मांड वर्ग की सब्जियां फूल लगने के बीस दिन में तैयार होती है। ऐसे में किसान उन्हें 5 दिन में ही पकाने का नुस्खा अपनाता है और तोड़कर बाजार भेजने की तैयारी कर लेता है। कई कीटनाशक का प्रभाव 7 दिन से एक माह तक रहता है। गोभी पर मेलाथियॉन का स्प्रे किया जाता है, जिसका असर डेढ माह तक रहता है।
गंदे पानी के संक्रमण से समय से पहले पके गोभी के फूल को इस स्प्रे के तुरंत बाद ही मंडियों में उतारा जा रहा है। इस कारण गोभी के फूल में गंदा संक्रमित पानी तो होता ही है साथ ही मेलाथियॉन का असर भी बना रहने से स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो रही है।

तरकारी के हारमोंस बदलने का धंधा
सब्जियों में हारमोंस बदलने का धंधा भी किसान करने लगे है। कीटनाशक की दुकानों पर मिलने वाला ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लौकी जैसी सब्जी की पैदावार के लिए लगाया जा रहा है ताकि लौकी की लंबाई बढ़ सके। गोभी का रंग सफेद रखने के लिए और मटर का रंग हरा रखने के लिए विभिन्न रंगों वाले इंजेक्शन कृषक लगाने लगे हैं। हाल ही में कृषि वैज्ञानिकों की ओर से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए सर्वे के दौरान मारवाड़ में भी हारमोंस से सब्जी व फल का उत्पादन बढ़ाने का पता चला है।सब्जियों में पाए गए कीटनाशकों का प्रभाव बड़ों पर कम लेकिन बच्चों पर अधिक पड़ता है। वर्तमान में बाजार में मिल रही सब्जियां शारीरिक व मानसिक व्याधियों का कारण बन रहीं हैं। ऐसी सब्जियों के निरंतर सेवन से बच्चों में पेट दर्द,बार-बार बुखार आना, मांस पेशियों में खिंचाव जैसे दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। इसके अलावा चिड़चिड़ापन व मानसिक रोग भी पनपने का खतरा बना रहता है।
—डॉ.बी.डी. गुप्ता, शिशुरोग विशेषज्ञ, उम्मेद अस्पताल, जोधपुर

हारमोंस से पैदावार बढ़ाने की शिकायतें मिली हैं। कीटनाशक दुकानदारों से सीधे खरीदने पर किसानों को अधिक पैदावार का नुस्खा दिया जा रहा है।कृषि विशेषज्ञों के सर्वे समय-समय पर होते रहते हैं। इसीसे पता चलता है कि यहां हारमोंस से पैदावार बढ़ाने का कार्य हो रहा है। कृषि विभाग समय-समय पर गांवों में शिविर लगाकर वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग के बारे में किसानों को बता रहा है। इसका असर कई किसानों में तो दिखाई देने लगा है, लेकिन पूरी तरह अभी भी किसानों को पैदावार के समयचक्र से छेड़छाड़ करने के अंदेशे से इनकार नहीं किया जा सकता।
—आई.आर. द्विवेदी, सहायक निदेशक, उद्यान विभाग, जोधपुर।

हारमोंस से फसल की किस्म सुधारने में कोई नुकसान नहीं होता। इसका प्रयोग इन दिनों मारवाड़ के किसान कर रहे हैं लेकिन कीटनाशक के प्रयोग को लेकर जागृति नहीं होने से किसान सीधे दुकानों पर जाकर कीटनाशक खरीदकर जो प्रयोग कर रहे हैं वो स्वास्थ्य के लिए घातक है।
—जे.एन.सांखला प्रगतिशील किसान

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