मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

जीवनशैली को सर्वांगीण बनायें, प्रकृति को बचाएं

विकास की रफ्तार बहुत तेज हुई है उसका श्रेय विज्ञान को ही है। सृष्टि संतुलन की समस्या का श्रेय भी विकास की आंधी को ही है। असंतुलित विकास को एक नदी का प्रवाह मानें तो बाढ़ का खतरा हो रहा है। मानवीय मूल्य और पर्यावरण ये दोनों तटबंध टूट गये हैं। अब जल प्रवाह की रोकथाम करना संभव नहीं है। मानवीय मूल्यों के विकास और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ जो विकास होता है, वह संतुलित विकास है। उससे महत्वकांक्षा अथवा आर्थिक स्पर्धा ने मानवीय मूल्यों का पर्यावरण दोनों की उपेक्षा की है फलतः सृष्टि संतुलन की समस्या उत्पन्न हूई है। विकास के प्रति वर्तमान दृष्टिकोण सम्यक नहीं है। वह संवेग के अतिरेक से प्रभावित है। अप्रभावित चिंतन और अप्रभावित बुद्धि का निर्णय सही होता है। संवेग की अतिरेक दशा में चिंतन और बुद्धि दोनों निष्क्रिय हो जाते हैं। इस निष्क्रियता की भूमिका पर होने वाला विकास मानवीय सभ्यता और संस्कृति के लिए वरदान नहीं होता। औद्योगिक और आर्थिक विकास ने कुछ समस्यायें सुलझायी है।
आज रोटी, कपड़ा अधिकांश गरीबों की झोपड़ी तक पहुंच रहे हैं। मकान की समस्या अभी भी बनी हुई है। फिर भी यह करने में संकोच नही होगा - आर्थिक विकास ने अमीरी को बढ़ावा देने के साथ-साथ गरीबी को बढ़ावा दिया है। वर्तमान में संपत्ति और उपभोग के साधनों पर अल्पसंख्यक व्यक्तियों को अधिकार है। बहुसंख्यक लोग उस अधिकार से वंचित है। विकसित राष्ट्र जितनी साधन सामग्री का उपभोग कर रहे हैं, उससे न्यूनतर उपभोग सामग्री विकासशील राष्ट्रों के पास है और अविकसित राष्ट्रों के पास न्यूनतम। गरीबी की अनुभूति और उससे उत्पन्न असंतोष आज जितना जटिल है उतना अतीत में नहीं था। वह असंतोष प्रकृति के नियमों को भंग करने का हेतु बन रहा है। हर व्यक्ति येन केन प्रकरेण अमीर बनना चाहता है उस धन में जंगलों की कटाई हो सकती है फैक्ट्रियों का कचरा नदियों में प्रवाहित कर जल को दूषित किया जा सकता है और भूमि का मर्यादाहीन खनन किया जा सकता है और सब कुछ हो रहा है। हम संवेगातिरेक की समस्या को सुलझाये बिना अनैतिकता अथवा अप्रमाणिकता की समस्या को नहीं सुलझा सकती।
अनैतिकता की समस्या को सुलझाये बिना सृष्टि संतुलन और पर्यावरण की समस्या को नहीं सुलझा सकते। बढ़ती आबादी स्वयं एक समस्या है आदमी की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बड़े उद्योगों की जरूरत है इसलिए विकास की सीमा को निर्धारित नहीं किया जा सकता। इस तर्क के पीछे छिपी हुई सचाई को कोई व्यक्ति अस्वीकार नहीं करेगा। हम समस्या के दूसरे पक्ष पर विचार करे। लोभ एक तीव्र संवेग है। उसकी प्रेरणा ने विकास की अवधारणा को जो आधार दिया है उसे सीमित करना आवश्यक है। हमारा अभिमत है कि असंतुलित संवेग और असंतुलित विकास की अवस्था में प्रकृति के साथ जीने की कल्पना कठिन हो जाती है। आज का करणीय कार्य यह है कि हम लोभ के संवेग के साथ करुणा के संवेग को जागृत करें। लोभ के संवेग को नियंत्रित करने का शक्तिशाली अस्त्र करुणा, अहिंसा मैत्री है। महावीर ने कहा था छोटे से छोटा जीव के अस्तित्व को अस्वीकार मत करो और अपने अस्तित्व को भी अस्वीकार मत करो जो दूसरे जीव के अस्तित्व को अस्वीकार करता है जो अपने अस्तित्व को अस्वीकार करता है वह दूसरे जीव के अस्तित्व को अस्वीकार करता है।
नैतिक मूल्यों को ह्रास -
दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करने वाला ही प्रकृति के साथ जी सकता है कुछ चिंतकों का तर्क है बुद्धिमान मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है, विकास के लिए वैसा करना जरूरी है। वह प्रकृति में होने वाली क्षति की पूर्ति करना भी जानता है इसलिए विकास की प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता है। उसकी कोई सीमा नहीं हो की जा सकती। यह चिंतन अर्थहीन नहीं है ऊर्जा का व्यय होता है तो उसके नये स्रोत खोजे जा सकते हैं जंगलो की कटाई होती है तो नये जंगल तैयार किये जा सकते हैं।
नई दिशा -
विश्वविद्यालय की शिक्षा ने बौद्धिक विकास और वैज्ञानिक विकास के नए द्वार खोले हैं। हम इस युग के चिन्तन मंथन और सुविधा की प्रचुर सामग्री से संतुष्ट है इसलिए इस दिशा में निरंतर आगे बढ़ने की बात सोच रहे है। तनाव, भय, अपराध और मादक वस्तुओं के सेवन की प्रवृत्ति संकेत दे रही है कि मनुष्य के भीतर भयंकर असंतोष है और वह असंतोष मनुष्य को प्रकृति के साथ अन्याय करने के लिए विवश कर रहा है।
सुख की अवधारणा -
जब तक इन्द्रियजन सुख संवेदना के आधार पर चलने वाली जीवनशैली होगी तब तक हम प्रकृति के साथ जीने की बात संगोष्ठियां और संभाषणों में भले ही करें यथार्थ के धरातल को वह प्रभावित नहीं कर पायेगें। इन्द्रिय चेतना के स्तर से ऊपर उठकर चिंतन करने का अर्थ होगा सुख की अवधारणा में परिवर्तन।
मध्यम मार्ग - प्रकृति के साथ होने वाले व्यवहार में सब वैज्ञानिक और विचारक एक मत नहीं है। कुछ विचारकों का मत है - प्रकृति के प्रकोप को शांत करने की विधियां हमारे पास है इसलिए पर्यावरण प्रदूषण की विभिषिका विकास की यात्रा में बाधा नहीं बन सकती।

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