सोमवार, 3 मार्च 2008

सवाल यह है कि हम किसे मार रहे हैं?

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में इटावा के पास चंबल नदी में दुर्लभ प्रजाति गेवियेलिस गेंगेटिक्स के सत्रह घड़ियाल मरे हुए पाए गए. घड़ियालों की यह दुर्लभ प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर है और शासन इनके संरक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन घड़ियालों की हत्‍या की गई है और इसके लिए वन विभाग के अमले के वो लोग ही जिम्‍मेदार बताए जा रहे हैं जिन्‍हें रक्षा करने का दायित्‍व सौंपा गया.जान लीजिए कि गेवियेलिस गेंगेटिक्स एक इतनी महत्वपूर्ण प्रजाति के घड़ियाल हैं कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्वेंशन ऑफ नेचर एंड नेचरल हेरिटेज़ (आईयूसीएन) ने इसे क्रिटिकल एंडेजर्ड श्रेणी में रखा है. भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 में भी इस प्रजाति को अनुसूची प्रथम में रखा गया है.इसे बचाने के लिए 1979 में चंबल नदी को घड़ियालों के लिए घोषित अभयारण्य बनाया गया. उस समय घड़ियालों की संख्या इतनी कम हो चुकी थी कि घड़ियालों की यह प्रजाति ही समाप्त हो जाती. इसी नदी से प्राप्त घड़ियालों के अंडों को इकट्ठा कर कृत्रिम प्रजनन हेतु लखनऊ स्थित कुकरेल घड़ियाल सेंटर पर ले जाया जाता था, वहां इन्हे दो-तीन साल रखने के पश्चात फिर चंबल में छोड़ दिया जाता था.वर्ष 1996 तक यह संख्या बढ़कर 1200 तक पहुंच गई किंतु वर्ष 2000 से एक बार फिर घड़ियालों के ऊपर संकट के बादल छाने लगे. कारण यह था कि अभयारण्य में जगह-जगह चोरी छिपे शिकार और उनके प्राकृत वास में बालू खनन का प्रकोप बढ़ता ही गया. पूरे चंबल नदी क्षेत्र में घड़ियालों की प्रजाति पर एक नया संकट दिख रहा है क्‍योंकि यह मानव निर्मित है.दुर्लभ प्रजाति के जानवरों के प्रति यह क्रूरतापूर्ण व्‍यवहार हमारी किस पाशविक प्रवृत्ति का द्योतक है? जीव हत्‍या का अधिकार किसने हमें दे दिया और वह भी ऐसे जीव जिन्‍हें हम पहले ही खत्‍म होने की कगार पर पहुंचा चुके हैं. सरकार उन्‍हें बचाने का अभियान चला रही है और चंद धन लोलुप अपराधी इन्‍हें मार रहे हैं. यदि इस क्रूरता पर अंकुश नहीं लगा तो एक दिन समूची मानव जाति का ही विनाश हो जाएगा.
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