रविवार, 2 मार्च 2008

जिले पर रेगिस्तान का अतिक्रमण

म.प्र. राजगढ जिले, ब्यावरा। मालव धारती गहन गंभीर डग-डग रोटी, पग-पग नीर... यह कहावत राजगढ जिले की धरती पर भी लागू होती थी, लेकिन लगातार कटते वनों और जल स्त्रोतों के बेहिसाब दोहन ने इस धरती को भी बंजर और ऊसर बना दिया। अब तो जिले की चार तहसीलों में रेगिस्तान के प्रारंभिक लक्षण भी दिखाई देने लगे हैं। राजस्थान के झालावाड जिले का सीमावर्ती क्षेत्र जीरापुर, खिलचीपुर या पठारी क्षेत्र राजगढ अथवा मैदानी इलाका ब्यावरा...। वनों की घटती तादाद और भूजल के अंधाधुंध दोहन ने इन तहसीलों को भी रेगिस्तानी भूमि बना दिया है। जिले की जलवायु और प्राकृतिक वातावरण बदल चुका है। वन विभाग का सर्वे बताता है कि इन चारो तहसीलों की जमीन, जलवायु और प्राकृतिक वातावरण धीरे-धीरे रेगिस्तानी होता जा रहा है। एक ही दिन में अधिक गर्म दिन और अधिक ठंडी रातें, ऊपरी मिट्टी का क्षरण, अनियमित बारिश और कांटेदार झाडियों की अधिकता इसके प्रारंभिक लक्षण ह। इन अनुभवों को कालांतर में महसूस किया जाएगा। वन विभाग ने अपने सर्वे में इन चारों तहसीलों को प्रारंभिक रेगिस्तानी लक्षण वाले इलाके घोषित किए हैं। क्षेत्र के विकास और उसको हराभरा करने के लिए विभाग ने एक कार्य योजना भी बनाई है। जिसके तहत जिले में मिशन डेजर्ट लागू किया गया है। इसके तहत वन समितियों को वन संरक्षण और संवर्धन के लिए जागरूक करना, वन्य क्षेत्र के बाहर सामुदायिक एवं भू-स्वामी हक की जमीन में फलदार एवं वानिकी प्रजाति के पौधों का रोपण करवाना, जल संरक्षण से संबंधित विभिन्न उपायों से परिचित करना, वनों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों जैसे सोलर कूकर, बायो गैस, एलपीजी, उन्नत धुआं चूल्ह का प्रशिक्षण दिया जाना है।

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