सोमवार, 3 मार्च 2008

राजस्थान: कृष्ण जन्मभूमि के दुश्मन रामभक्त

ब्रजभूमि में अदालती आदेश की अवहेलना हो रही है
रश्मि सहगल

आईआईटी रुड़क़ी स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग ऑर्गेनाइजेशन द्वारा उपग्रह से ली गई तस्वीरों से जाहिर होता है कि पिछले एक दशक के दौरान खनन में 26 गुना वृध्दि हुई है।
सत्ता में आने के लिए भाजपा ने राम जन्मभूमि का पत्ता चला था लेकिन राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भरतपुर में पड़ने वाले कृष्ण जन्मभूमि क्षेत्र को तबाह करने के बारे में पुनवचार नहीं किया। खुदाई के लिए पहाड़ों को बड़े पैमाने पर डायनामाइट से उड़ाने की वजह से अरावली की पहाड़ियां तबाह हो रही हैं। माना जाता है कि इसी क्षेत्र में कृष्ण ने अपनी लीला रची थी। आखिर यह विस्तृत ब्रज भूमि का ही हिस्सा है।
इस खनन से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हो रहा है। अदालत ने ताज ट्रेपेजियम जोन में खनन और पत्थर तोड़ने समेत हर तरह की प्रदूषणकारी गतिविधि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। भरतपुर जिले के दीग और कमान तहसीलों समेत पूरी ब्रजभूमि इसी जोन में शामिल हैं। एक ओर जहां हरियाणा और उत्तरप्रदेश में ब्रज भूमि में खनन पर रोक लग गई है, राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रख दिया है। कभी वनाच्छादित रही इन पहाड़ियों पर अब धूल की मोटी पर्त जम गई है। ज्यादातर खानें चांद पर धब्बे जैसी लगती हैं। आईआईटी रुड़क़ी स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग ऑर्गेनाइजेशन द्वारा उपग्रह से ली गई तस्वीरों से जाहिर होता है कि पिछले एक दशक के दौरान खनन में 26 गुना वृध्दि हुई है।
ब्रजभूमि में आने वाले धामक नेताओं और तीर्थयात्रियों की बढ़ती शिकायतों के चलते भाजपा-आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने खनन की इन गतिविधियों की ओर से आंख फेरने के लिए वसुंधरा राजे की तीखी आलोचना की है लेकिन यहां से इतनी मोटी आय हो रही है कि राज्य सरकार को खनन कार्य रोकना मुश्किल लग रहा है।
कमान की एक कंपनी में अकाउंटेंट का काम कर चुके एक स्थानीय ग्रामीण ने स्वीकार किया, ''एक खान से मेरे मालिक को एक दिन में 16 लाख रु. और महीने में चार करोड़ रु. तक की आमदनी होती है। इन पत्थरों को तोड़कर गुड़गांव, दिल्ली और नोएडा में बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्य में प्रयोग के लिए भेज दिया जाता है।'' ऐसी कंपनियां मुख्यत: पारिवारिक स्वामित्व में चल रही हैं।
स्थानीय स्वयंसेवी संगठन ब्रज रक्षक दल (बीआरडी) के कार्यकर्ताओं का कहना है कि फिलहाल इन दो जिलों में 83 स्थानों पर खनन हो रहा है और पत्थर तोड़ने की 70 इकाइयां हैं।
इस संवाददाता ने कम पानी वाले इस क्षेत्र में 60 से अधिक ईंट भट्ठों की गिनती की। ईंट बनाने के लिए काफी पानी की जरूरत होती है और भट्ठे प्रदूषण भी काफी फैलाते हैं। हालांकि खनन करने वालों ने ग्रामीणों को लिखित आश्वासन दे रखा है कि वे दिन में 2 बजे के बाद ही डायनामाइट से विस्फोट करने का काम करेंगे ताकि गांवों की महिलाएं और बच्चे सुबह अपने मवेशियों को चरा सकें। लेकिन इस गोरखधंधे का सबसे भयावह पहलू यह है कि वे अपने आश्वासन पर शायद ही कभी अमल करते हैं।

इस संवाददाता और एक फोटोग्राफर को दिन में 11 बजे से ही विस्फोटों की आवाज सुनाई देने लगी। स्थानीय कार्यकर्ता हरिबोल बाबा, जो हमारे साथ थे, ने कहा, ''गिरती चट्टानों से दबकर मरने और गंभीर रूप से घायल होने वाले ग्रामीणों और मवेशियों की कोई गिनती नहीं है। कुछ महीने पहले छह मजदूर एक विशाल चट्टान के नीचे दबकर मर गए लेकिन चूंकि वे बिहार के थे, सो उनकी मौत की खबर की लीपापोती कर दी गई। ये खनन करने वाले मुआवजे की मामूली रकम चुका कर मामले को रफा-दफा कर देते हैं।''
राजस्थान, जहां मकराना स्थित है, में खान मजदूर संरक्षण अभियान के राणा सेन गुप्त ने कहा, ''इन खानों में काम करने वाले मजदूरों का काम बहुत खतरनाक है। हर महीने औसतन तीन लोगों की मौत होती है और 30 लोग घायल होते हैं। चट्टानों के गिरने से कई मजदूर दबकर मर जाते हैं।''
राजस्थान के राजनीतिक नेतृत्व को पारंपरिक छतरियों को हो रहे नुकसान की कोई परवाह नहीं है। ये छतरियां पत्थर पर नक्श उन चिन्हों की रक्षा करती हैं जिनके बारे में ग्रामीणों का विश्वास है कि ये'श्रीकृष्ण के पदचिन्ह' हैं। इन ग्रामीणों का कहना है कि कई छतरियां पूरी तरह नष्ट हो गई हैं।
बीआरडी के संयोजक विनीत नारायण का कहना है, ''हमारे सभी धामक ग्रंथों में कृष्ण की रास लीला का वर्णन है। इन विस्फोटों से पुराने वन, छतरी और मंदिर तबाह हो गए हैं और इसके बावजूद केंद्र सरकार ने इन सबकी ओर से आंख फेर ली है।'' भाजपा-आरएसएस के दबाव में राजस्थान के खनन और पर्यावरण मंत्री लक्ष्मीनारायण दवे पारंपरिक परिक्रमा मार्ग के 500 मीटर में खनन की सारी गतिविधि पर प्रतिबंध लगाने के लिए राजी हो गए हैं। उन्होंने कहा, ''मुझे इसकी उतनी ही चिंता है जितनी बीआरडी कार्यकर्ताओं को है। हमने एक करोड़ का नुकसान बर्दाश्त कर 19 खानों को बंद करने का आदेश दे दिया है। हम और क्या कर सकते हैं?'' लेकिन उनके इस फैसले से तीर्थयात्री या धामक संस्थाएं संतुष्ट नहीं हैं। हरिबोल बाबा ने कहा, ''तीर्थयात्रियों के विश्वास के अनुसार यात्राओं में अंतर होता है। हरिदास के अनुयायी उन्हीं स्थानों पर जाते हैं जहां उनके गुरु गए थे, चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उन्हीं के रास्ते पर चलते हैं। ब्रज की पूरी पहाड़ी को संरक्षित करने की जरूरत है। आप यह आशा नहीं कर सकते कि एक ओर तीर्थयात्री चलें और दूसरी ओर पहाड़ी को विस्फोट से उड़ाया जाए।''
बताया जाता है कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस मामले में वसुंधरा राजे को टोका है। स्वयं राजे हमेशा कहती रही हैं कि वे अवैध खनन रोकना चाहती हैं लेकिन इन खनन केंद्रों पर जाने से कहानी कुछ और ही कहती नजर आती है। उन खानों की रखवाली के लिए राजस्थान राज्य पुलिस के जवानों को तैनात किया गया है।
भाजपा के पूर्व सांसद और विहिप नेता अशोक सिंघल के भाई बी.पी. सिंघल को लगता है कि राजे लाखों हिंदुओं की भावनाओं की अनदेखी कर रही हैं। उनका कहना है, ''सरसंघचालक सुदर्शन से लेकर नीचे तक के लागों ने उन (राजे) पर दबाव डाला है लेकिन वे अपनी मर्जी की चला रही हैं।''
सिंघल ने बताया, ''उनके मंत्री (दवे) का कहना है कि इन खानों में काम करने वाले 40 हजार मजदूरों के लिए अगर वैकल्पिक रोजगार खोज दिया गया तो वे सारी खानों को बंद कर देंगे। जब हमने मजदूरों का रजिस्टर देखा तो पाया कि केवल दो हजार मजदूरों को ही काम दिया गया है और उनमें से सभी दूसरी जगहों के लोग हैं। स्थानीय ग्रामीण इन खानों में काम करने से मना कर देते हैं।''

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