वाराणसी : गंगा के किनारे हजारों साल पहले बसी काशी (आधुनिक वाराणसी )का अस्तित्व आज खतरे में है। वजह है पानी की कमी से गंगा का सूखते जाना। इस पवित्र नदी का पाट पिछले 20 सालों में ही लगभग 100 मीटर सिकुड़ गया है।
आंकड़े बताते हैं कि 1988 में काशी में गर्मियों के दौरान गंगा नदी की औसत चौड़ाई 340-350 मीटर हुआ करती थी। लेकिन इस साल इस नदी की धारा महज 250 मीटर के आसपास रह गई है। यह स्थिति गंभीर ही नहीं भयानक लगती है।
आईआईटी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में स्थापित 'गंगा अनुसंधान प्रयोगशाला' के प्रमुख प्रोफेसर उदयकांत चौधरी ने बताया कि 1988 में उनके रिसर्च में गंगा नदी में जल स्तर मई महीने में समुद तल की तुलना में 58.8 मीटर से लेकर 58.6 मीटर तक नापा गया था जो इन गर्मियों में सवा मीटर से ज्यादा घट कर 57.2 मीटर के आसपास रह गया है।
सवाल उठता है कि बनारस के अस्तित्व से जुड़ी गंगा में जब जल के बजाय बालू के टीले ही रह जाएंगे तो यहां दुनिया भर में मशहूर 'सुबह ए बनारस' कैसे होगी? कौन आएगा यहां पर्यटन करने। दूसरी ओर देश की दूसरी नदियों के साथ गंगा के जल का सबसे प्रामाणिक अध्ययन करने वाली केंद्र सरकार की संस्था केंद्रीय जल आयोग के मुख्य अभियंता ए. के. गंजू ने बताया कि स्थिति उतनी भयानक नहीं है जितनी बताई जा रही है।
यह पूछे जाने पर कि आयोग के आंकडे़ क्या कहते हैं गंजू ने गंगा में पानी के स्तर की माप गोपनीयता के नाम पर बताने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने यह जरूर बताया कि समुद्र तल की तुलना में वाराणसी में गंगा का जलस्तर इस समय 57.7 मीटर के आसपास है जो बरसात में अभी भी 75 मीटर के ऊपर तक चला जाता है।
भारत-बांग्लादेश गंगा जल समझौते की वजह से केंद्र सरकार का कोई भी अधिकारी गंगा में जल की स्थिति पर मुंह खोलने को राजी नहीं हैं लेकिन दबी जुबान से गंगा में जल की भारी कमी को सभी स्वीकार करते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भूगर्भ शास्त्र के पूर्व प्रोफेसर व गंगा और काशी के अन्य जल सोतों का अध्ययन करने वाले प्रोफेसर जी. सी. चौधरी ने भी स्वीकार किया कि गंगा में जलस्तर गिरने से अब गर्मियों में वाराणसी के भूजल भंडार से ही गंगा नदी में पानी की कुछ भरपाई हो रही है।
इससे यहां के भूजल भंडार में जल का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। गंगा में पानी की इतनी कमी हो गई है कि बनारस के ऐतिहासिक रामनगर किले के सामने गंगा में लगभग 200 मीटर चौड़ी बालू की पट्टी लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबाई तक खिंच गई है। यह हालत काशी के रेगिस्तानी भविष्य की ओर इशारा करती है।