भारत सरकार न केवल भारत-अमरीका परमाणु संधि को बेहद उत्साह के साथ आगे बढ़ा रही है बल्कि इस तथ्य को भी नकार रही है कि विश्व में परमाणु कचरे को सुरक्षा पूर्वक नष्ट करने का कोई तरीका अभी तक इजात नहीं हुआ है.
भारत में सालों से जादूगोड़ा में परमाणु कचरे को फेंका जाता है - और चूँकि जादूगोड़ा बनारस के नज़दीक ही है, यह हो सकता है कि जादूगोड़ा में परमाणु रेडियो-धर्मी कचरे की वजह से बनारस के भू-जल में रेडियो-धर्मिता आ गयी हो.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के भूतपूर्व आचार्य जी सी अगर्वाल और आचार्य एस.के अगर्वाल ने शोध किया और पाया कि बनारस के भू-जल में रेडियोधर्मी युरेनिम है.
हालाँकि उत्तर प्रदेश और केंद्रीय भारत सरकार इस रपट से बे-खबर है.
इस शोध में ११ ट्यूब-वेल से सैम्पल लिए गए थे. इस शोध में रेडियोधर्मी युरेनिम की मात्रा २ - ११ पार्ट पर बिलियोन पाई गयी. युरेनिम की जो मात्रा 'सुरक्षित' मानी गयी है वोह १.५ पार्ट पर बिलियोन है.
शोधकर्ताओं के अनुसार भूजल में अन्य भारी मेटल भी पाए गए जैसे कि च्रोमिम, मग्नेसियम, निक्केल, फेर्रोउस, कोप्पेर, जिंक और लेड.
उत्तर प्रदेश के पोल्लुशन कण्ट्रोल बोर्ड (प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के सदस्य-सचिव सी.एस भट्ट के अनुसार उनके पास ऐसी कोई रपट नहीं आई है कि बनारस के भूजल में रेडियोधर्मी युरेनिम है, और यदि रेडियोधर्मी युरेनिम हो भी तो उनके पास कोई ऐसी जांच करने के संसाधन नहीं है जिससे यह पता लगाया जा सके।
रेडियोधर्मी युरेनिम से स्वास्थ्य पर भयंकर कुप्रभाव पड़ सकते हैं जिनमें पार्किन्सन बीमारी और अन्य दिमागी बीमारियाँ प्रमुख हैं, और कैंसर का अनुपात भी बढ़ सकता है।