शनिवार, 26 अप्रैल 2008

ठिकाना पेड़, जुनून जंगल की रखवाली का

विष्णु चंद्र पालवह रहता है जंगल में पेड़ पर। उसके दोस्त-समाज हैं जंगली जीव। बेइंतहा मोहब्बत करता है पेड़-पौधों से। जंगल की रक्षा को लेकर वह इतना संजीदा है कि पिछले 20 साल से घर गया ही नहीं। वन में एक पेड़ को ही आशियाना बना लिया और पेड़ के ऊपर ही कमरा बनाकर रहता है ताकि उसके जंगल की रक्षा के मिशन में किसी प्रकार का खलल न पैदा हो सके।जी, हां। इस तरह की बातें या घटना आपने फिल्मों में देखी होगी। खासकर टारजन फिल्म में। उस फिल्म का टारजन अफ्रीका की अमेजन नदी घाटी में घने जंगलों में रहता है और जंगलों को बचाने के लिए काम करता है।

लेकिन हम बात कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में रहने वाले एक टारजन की जो पिछले 20 साल से जंगल के पेड़ को अपना ठिकाना बनाए हुए है और जिस पर जुनून सवार है जंगल की रखवाली का। पुरुलिया के इस टारजन का नाम है विपद तारण मुंडा।दरअसल आम इंसानों की तरह घर के बजाय पेड़ के ऊपर घर बनाकर रहने वाला यह युवक हाथ में प्रचलित हथियार लिये जंगल की रखवाली में लगा रहता है। जिले के कोटशिला थाना क्षेत्र अंतर्गत अयोध्या पहाड़ से सटे लगभग 15 किलोमीटर क्षेत्र में फैले गोविंदपुर जंगल के पास मुरगुमा ग्राम के वृद्ध मुंदलु मुंडा का पुत्र है विपद तारण मुंडा। अपनी इस जीवन शैली व जंगल से जुड़ाव के बारे में उसने दैनिक जागरण से काफी अंतरंग बातचीत की। विपद तारण ने बताया कि जब छोटा था, तब इस जंगल की पहरेदारी उसके पिता मुंदलु मुंडा करते थे। तभी से उसे जंगल और जंगली जानवरों से प्रेम हो गया। अब पिता ने जंगल की रखवाली का जिम्मा उसे ही सौंप दिया है।

अब इसी जंगल के एक बड़े कुसुम के पेड़ के ऊपर बांस, लकड़ी व टिन से उसने एक घर बना लिया है। इस घर में वह रहता है। हाथ में चाकू, तीर-धनुष व बल्लम लेकर दिन रात जंगल की सुरक्षा करते-करते करीब 20 साल गुजर चुके हैं। वह अपना काम पूरी निष्ठा से कर रहा है। हालांकि जंगल की रखवाली के समय उसे कई बार खतरों का भी सामना करना पड़ा। जान पर भी बन आयी। लेकिन जुनून ऐसा कि इसके बाद भी वह अपने काम में लगा है। अनवरत। बिना किसी डर भय के। वह बताता है कि जंगल की रखवाली करने के दौरान एक बार जंगली भालू ने उसपर हमला कर दिया था। लेकिन कोई चोट नहीं आई। वह बताता है कि उसे जंगली जानवर भी चाहने लगे हैं। जंगल में 18 हाथियों से उसकी दोस्ती इसी का प्रमाण है। विपद जंगल के फल व सब्जियों को खाकर काम चलाता है। इस जंगल के आसपास के लक्षीपुर, गुरगुमा, वेगुन कोदर समेत अन्य गांवों के ग्रामीण विपद को जानते हैं और उसे बहुत चाहते हैं। उसे हर तरह से सहयोग देने में भी लगे रहते हैं।शायद यही कारण है कि पिछले 20 साल में इस जंगल में लकड़ी चोरी की घटना बहुत कम हुई है। वन विभाग उसके काम से काफी प्रभावित है। डीएफओ के वालागुरमन ने इसके लिए टारजन विपद तारण मुंडा को पुरस्कृत करने का मन बनाया है। लेकिन विपद तो अपनी निष्काम सेवा में किसी तरह की अपेक्षा रखता ही नहीं। वह तो किसी सन्यासी की मानिंद सेवा में लगा रहता है। इसी के लिए तो उसने छोड़ा था घर। त्याग किया था समाज का। दूर हुआ था अपनों से। अब तो जंगल, पेड़-पौधे और जानवर ही उसके लिए सब कुछ हैं। वह किसी से कुछ मांगता तक नहीं। जंगल को ही उसने जीवन बना रखा है।
साभार-जागरण

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