सोमवार, 25 अगस्त 2008

सर्वोत्तम कीटनाशक नीम

उपरोक्त सारी परिस्थितियाँ आज दुनिया के कृषि-वैज्ञानिकों के समक्ष गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। रासायनिक कीटनाशकों के कृषि, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य विरोधी परिणामों को देखते हुए अब ऐसे वैकल्पिक कीटनाशकों के अनुसंधान पर जोर दिया जाने लगा है, जो (१) मनुष्य एवं मानवेतर जीवों के लिए अल्प या शून्य हानिकारक तथा सुरक्षित हों, (२) जिसके जैवकीय विघटन होने से मिट्टी, जल एवं वायु दूषित न हों, (३) जिससे प्रतिकूल कीड़े ही मारे जा सकें, अनुकूल कीड़े नहीं, (४) जो लक्षित कीटों की प्रतिरोधी क्षमता विकसित न होने दे, (५) जो रासायनिक कीटनाशकों की अपेक्षा सस्ता, सहज प्राप्य एवं पार्श्व प्रभाव रहित हो, (६) जिनका प्रभाव भले ही रासायनिक कीटनाशकों की तरह न हो, धीमी ही हो और कीटों द्वारा कुछ नुकसान भी उठाना पड़े, किन्तु खाद्यान्न, मिट्टी, जल, वायु एवं जीवन में विषाक्तता का प्रवेश न हो। इन अपेक्षाओं की पूर्ति सिर्फ वनस्पति जगत से ही हो सकती है और विकल्प की तलाश में 'नीम' एक सर्वोत्तम कीटनाशक रूप में सामने आया है।
भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों, मुख्यत: जर्मनी, अमेरिका एवं जापान में विगत ३०-४० वर्षों के दौरान नीम वृक्ष के कीटनाशक तत्वों की खोज के लिए बड़े पैमाने पर सघन अनुसंधान हुए हैं और पाया गया है कि इस वृक्ष के फल, बीज, गिरी तथा डाल, तना एवं जड़ की छाल में कीट-विरोधी कई गुण मौजूद हैं। यह एक ही साथ कीट-भरण प्रतिरोधक (antifeedant), कीटनाशी (Insecticidal), कीट-वृद्धि विघटक (Insect-growth disrupting), गोल-कृमि प्रतिरोधी (Nematicidal), कवक/फफुंदनाशी (Fungicidal), जीवाणुनाशी (Bactericidal), कीट/वायरस/बैक्टेरिया विकर्षक (Insect/Virus/Bacteria-repellent) और कीटों के विरुद्ध बन्ध्यीकरण (Sterilizing) गुण वाला है। वैज्ञानिकों का अभिमत है कि प्रकृति-प्रदत्त नीम वृक्ष कीटनाशक (एवं उर्वरक रूप में भी) बेमिसाल है और इसे व्यापक पैमाने पर उपयोग में लाया जा सकता है।
नीम वृक्ष की और भी कई तात्विक विशेषताएँ हैं। जैसे-(१) अन्य वृक्षों/पौधों की अपेक्षा इसमें अल्प या शून्य मात्रा में विषाक्तता (Taxocity) पायी जाती है, जो मधुमक्खियों या गैर-संक्रमक कीटाणुओं के लिए उपयोगी है, (२) इसमें करीब ३०० किस्म के प्रचलित कीटों को मारने या प्रतिबन्धित करने की क्षमता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने १०६ से अधिक कीटों पर किये गये परीक्षणों में इसे प्रभावकारी पाया है, (३) यह एक सरल, सहज प्राप्य एवं रासायनिक कीटनाशकों की अपेक्षा सस्ता स्रोत है। इसे घरेलू स्तर पर भी आसानी से तैयार किया जा सकता है, (४) सिंथेटिक कीटनाशक जहाँ शत्रु कीटों के साथ मित्र कीटों को भी मार देते हैं जिससे जैवकीय असंतुलन पैदा होता है और कीटनाशकों की माँग बढ़ जाती है तथा उसका दीर्घकालिक दुष्प्रभाव भी बना रहता है, वहीं नीम कीटनाशक मित्र कीटों पर अल्प प्रभाव डालते हैं, अपना काम करने के बाद शीघ्र विघटित हो जाते हैं और भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि के साथ फसलों में हारमोन संतुलन भी बनाये रखते हैं, (५) इसमें कीटों के लारवों (डिंभक) के रूपान्तरण प्रक्रिया को विखण्डित कर नये रोगाणुओं के विकसित होने से रोकने, कीटों की प्रतिरोधी क्षमता का ह्लास करने, कीटों को विकसित तथा उसके भरण को प्रतिबन्धित करने की जबर्दस्त क्षमता है, (६) फसलों, पौधों तथा भण्डारित अन्न को नष्ट करने वाले मुख्यत: चार प्रकार के कीट होते हैं-फसलों को कुतर कर नष्ट करने वाले, डंठल एवं फलों, तथा परागकणों का रस चूसने वाले, बीज के अंकुरित होते ही जड़ से नष्ट करने वाले और भण्डारित अन्न को भीतर से खोखला करने वाले। दीमक, पतंग, भृंग, घून, शलभ, टिड्डी, तितली, मक्खी, लाही, इत्यादि लगभग १२० किस्म के कीड़ों को नियंत्रित करने में अकेले नीम सक्षम है, (७) इसकी सबसे बड़ी खूबी यह पायी गयी है कि यह कीटों को ही खाने वाले कीटों तथा मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों के प्रति हानि-रहित है। जलीय जीवों, जैसे-केकड़ा, झींगा, मछली, बेंगची आदि को भी यह बहुत नुकसान नहीं पहुँचाता। केकड़ा, झींगा तथा मछली में ऐसा कोई विष उत्पन्न नहीं करता, जो जीवन के लिए घातक हो।
नीम द्वारा नियंत्रित किए जा सकने वाले कुछ कीट:

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