सोमवार, 25 अगस्त 2008

उर्वरक रूप में नीम-खली

१. सिंथेटिक रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पन्न कृषिक, पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संकटों को देखते हुए पूरी दुनियाँ में आज ऐसे कृषि-प्रबन्धन पर जोर दिया जा रहा है, जो शुद्ध खाद्यान्न दे, पर्यावरण प्रदूषित न करे, जीवन को क्षति न पहुँचावे, जिससे उत्पादन में कमी न हो, अनुपजाऊ भूमि का उपयोग हो सके, कृषि आधारित उद्यम एवं रोजगार की वृद्धि हो तथा खेती में विविधता आवे। ये सारी अपेक्षाएँ तभी पूरी हो सकती हैं, जब कार्बनिक खाद के स्रोतों का विकास हो, जैसे वानिकी, बागवानी, पशु (गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर आदि) का पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, फसलों में विविधता आदि हो और कुदरती खादों का प्रयोग हो। नीम वृक्ष की इस पूरी समन्वित कृषि प्रबन्धन में आंशिक ही सही, किन्तु महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कार्बनिक खाद का एक प्रमुख स्रोत है।
२. मिट्टी में सुधार के लिए नीम खली के प्रयोग पर इधर काफी गहन अनुसंधान हुए हैं। खेतों में इसका प्रयोग नाइट्रोजन के अभाव की पूर्ति और फसल के पोषण के लिए किया जाता है। यह प्राकृतिक खाद के रूप में बेमिशाल है। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, उसकी ताकत बनाये रखने में यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह बंजर भूमि को उर्वर बनाने में भी बहुत उपयोगी है। इसमें कैल्सियम खनिज उपलब्ध है,जो मिट्टी की क्षारीयता को बदलकर उपजाऊ बनाता है। बंजर तथा शुष्क भूमि में यह नमी भी लाता है।
३. नीम खली में अन्य खलियों की अपेक्षा सल्फर (१.०७ से १.३० प्रतिशत) अधिक होता है। यह एक शानदार उर्वरक एवं पोषक के रूप में काम करता है। सिर्फ आर्गेनिक नाईट्रोजन के रूप में ही नहीं, नाइट्रीकरण निरोधक (नाईट्रोजन नियामक) के रूप में भी यह काम करता है। फिलिपाइन्स के इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किये गये प्रयोग से पाया गया कि नीम खली को यूरिया के साथ धान के खेत में डाला जाय तो वह नाईट्रेजेनस (नेत्रजनीय) उर्वरक के रूप में काम करता है। यह जैविक कार्बनिक खाद का भरपूर स्रोत है। रेंड़ी खाद में जहाँ ४.३ प्रतिशत, महुआ में २.५ प्रतिशत तथा सूरजमुखी में ४.९ प्रतिशत नेत्रजन पाया जाता है, वहीं नीमखली में इसकी मात्रा ५.२ प्रतिशत होती है।
४. नीम खली के उपयोग से भूमि की मृदा (नमी) बनी रहती है, कीटों/दीमक तथा संक्रामक जीवाणुओं के प्रकोप को भी यह प्रतिबन्धित कर फसल को बचाता है। यह उन जैव कीटों की रक्षा एवं वृद्धि करता है, जो फसल के लिए उपयोगी हैं। इस खली द्वारा उत्पादित अन्न में भी कीट (घून आदि) लगने की संभावना बहुत कम होती है।
५. फलदार वृक्षों की वानिकी के समय उसके गड्ढों में नीम खली मिलाने से कीटों/दीमकों से वृक्ष की सुरक्षा होती है और उसका पोषण भी होता है। प्राकृतिक खाद की तरह पशुखाद से भी मिट्टी की नमी बनी रहती है, जो फसलों को सूखे से बचाता है। पशुपालन से उर्वरक के अतिरिक्त बायोगैस संयंत्र द्वारा उष्मा भी प्राप्त की जा सकती है।
६. प्राकृतिक उर्वरक (नीम खली आदि) अवक्रमण उत्सर्जन (Biodegradable) और जीवनाशी प्रबन्धन के लिए अच्छा स्रोत है, इसमें दुष्ट कीटों की प्रतिरोधी क्षमता को नष्ट करने की ताकत अधिक है। इसे मिट्टी में डालने से फसल पर कवक, निमिटेडो आदि का संक्रमण नहीं होता।
७. अंगूर की खेती करने वाले दक्षिण भारतीय कृषक नीम खली के विषय में कहते हैं-"We use it mainly to avoid termites and ants, further it boosts the yeild." नीम खली Farmyard Mannure से भी अधिक शक्तिशाली उर्वरक पाया गया है। खेतों में डालने पर यह मिट्टी को पोषण तो देता ही है, मिट्टी को कीड़ों, गोलकृमियों तथा फुंगियों से भी बचाता है।
८. नीम खली में उपलब्ध ट्राइटरपेन्स संघटन/यौगिक मिट्टी में नाइट्रीकारी जीवाणुओं (Nitrifying Bacteria) की सक्रियता को मंद करता है और डाले गये उर्वरकों से अधिक नाइट्रोजन उत्पन्न करता है। संवर्द्धित नीम खली ५६.५ प्रतिशत नाइट्रोजन ६० दिन में छोड़ता है। इसमें कार्बोहाइड्रेड २६.१ प्रतिशत एवं क्रूड प्रोटीन ३६ प्रतिशत पाया जाता है। यह धान, कपास तथा गन्ने की फसल के लिए विशेष उपयोगी है। इसे यूरिया एवं सुपर सल्फेट की थोड़ी मात्रा के साथ (लगभग ९:१ अनुपात में)मिलाकर खेत में डालने पर २५ से ५० प्रतिशत तक यूरिया की बचत करता है।
९. टमाटर के पौधों की जड़ों में बड़ी-बड़ी ग्रंथियां उत्पन्न हो जाती हैं और पत्ते सूखने लगते हैं। जड़ भी गलने लगता है। यह रोग जिस जीवाणु से होता है, उसे निमेटोड (गोलकृमि) कहते हैं। इसके रोकथाम के लिए अन्य उपायों के अतिरिक्त जुताई के समय प्रति एकड़ १० क्विंटल नीम खली डालने पर इस रोग के लगने की संभावना प्राय: समाप्त हो जाती है।
१०. उर्वरक खाद, जैसे यूरिया और अमोनियम मृदा में क्रिया करके एसिड उत्पन्न करते हैं। सोडियम नाइट्रेट के लम्बे समय तक उपयोग से मृदा क्षारीय बन जाती है, जिसका पौधों की वृद्धि एवं विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। नाइट्रेट की अधिक मात्रा जल में घुलकर अन्तत: जल-स्रोत में मिल जाती है, अत: पेय जल में नाइट्रेट की मात्रा अधिक होने से उसका सेवन हानिकारक हो जाता है।
११. एक हेक्टेयर भूमि में कृषि के लिए कार्बनिक खाद हेतु ३ नीम का पेड़ और २ पशु (गाय, भैंस या बैल) के गोबर पर्याप्त हैं। इनसे खेत को सभी आवश्यक तत्त्वों की पूर्ति हो सकती है।
१२. भूमि की गहरी जुताई, उसे धूप में कुछ दिन तक छोड़ देना, फसलों में हेर-फेर (क्योंकि हर कीट हर फसल पर नहीं लगते), परजीवी कीटों (जो दूसरे कीटों का भक्षण करते हैं) की रक्षा और कीट-भक्षी पक्षियों की रक्षा, उत्तम एवं सुरक्षित खेती के सूत्र हैं।
१३. एक ग्रामीण कहावत है-


वही किसानी में है पूरा जो छोड़े हड्डी का चूरा।
गोबर मैला नीम की खली इनसे खेती दूनी फली।


कार्बनिक एवं अकार्बनिक उर्वरक
फसलों के लिए जरूरी उपरोक्त तत्त्वों के दो स्रोत हैं- कार्बनिक (organic) खाद और अकार्बनिक (inorganic) खाद। कार्बनिक खाद, जिन्हें कम्पोस्ट खाद या प्राकृतिक खाद भी कहते हैं, के स्रोत वनस्पति जगत तथा जीवधारियों के अंग-अपशिष्ट, अर्थात् पेड़-पौधों के फल, बीज, पत्ते, बीजों के तेल एवं खली तथा मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के मल-मूत्र, हड्डी, फसलों के डंठल, अन्न की भूसी, छिलका, बुहारन की राख इत्यादि हैं। अकार्बनिक खाद के स्रोत मुख्यत: खनिज पदार्थ एवं कृत्रिम साधन हैं।कार्बनिक एवं अकार्बनिक खाद के कुछ प्रमुख गुण-दोष इस प्रकार हैं -
१. कार्बनिक खाद फसलों पर जहाँ धीरे-धीरे असर डालता है, वहाँ अकार्बनिक खाद तेज असर डालता है।
२. कार्बनिक खाद का प्रभाव जहाँ दूसरे, तीसरे फसलों तक बना रहता है, वहाँ अकार्बनिक खाद का प्रभाव प्राय: पहली फसल तक (विशेषत: नाइट्रोजन का असर खत्म होने तक) रहता है।
३. कार्बनिक खाद से मिट्टी की प्रकृति एवं ताकत अच्छी बनी रहती है, वहाँ अकार्बनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी की प्रकृति एवं ताकत धीरे-धीरे बिगड़ने व क्षीण होने लगती है। मिट्टी में अम्लीयता एवं क्षारीयता की मात्रा क्रमश: बढ़ने से भूमि की उर्वरता शक्ति के ह्लास के साथ ऊपज भी कम होने लगती है।
४. कार्बनिक खाद के प्रयोग से आंशिक उपयोगी तत्त्वों की पूर्ति स्वत: होती रहती है, जबकि अकार्बनिक खाद के प्रयोग करने पर इनकी अतिरिक्त पूर्ति करनी होती है।
५. जिस खेत में कार्बनिक खाद का प्रयोग होता है, उसकी वर्षा को धारण करने की क्षमता अधिक होती है, जबकि अकार्बनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी की धारीय क्षमता कम होती है, जिसके कारण वर्षा जल बहुत कुछ प्रक्षालित होकर बह जाता है।
६. कार्बनिक खाद अधिक मात्रा में देने पड़ते हैं, लेकिन एक सीमा के बाद मात्रा नहीं बढ़ाने पर भी ऊपज का औसत उत्पादन बना रहता है, जबकि अकार्बनिक खाद की थोड़ी मात्रा से काम तो चल जाता है, लेकिन कुछ ही वर्षों बाद उसकी मात्रा न बढ़ायी जाय तो ऊपज घटने लगती है।
७. कार्बनिक खाद फसल बोने से पहले जुताई करते समय ही खेत में डाल दिया जाता है, इससे श्रम एवं समय की बचत होती है तथा फसलों का नुकसान कम होता है। अकार्बनिक खाद फसल बोते समय मिट्टी में या खड़ी फसल में ऊपर से छिड़ककर डाला जाता है। खड़ी फसल में अकार्बनिक खाद का प्रयोग करने से यदि खाद के अंश फसलों के गोलक (पत्तों के बीच वाला ऊपरी मुँह) में पड़ जाय तो वह नुकसान करता है, साथ ही खाद छीटने वाले व्यक्ति के पैर से कुचल कर बहुत से फसल नष्ट भी हो जाते हैं, अतिरिक्त श्रम भी करना पड़ता है। फसलों के बीच से गुजरने पर सही छिड़काव न होने से कहीं अधिक तो कहीं कम खाद की मात्रा पड़ती है। इससे खेत के विभिन्न हिस्सों में फसलों की ऊपज में अन्तर आ जाता है।
८. कार्बनिक खाद समेकित कृषि प्रबन्धन में निजी संसाधनों से सहज एवं कम मूल्य में या नि:शुल्क प्राप्त हो जाते हैं, जबकि अकार्बनिक खाद के लिए कारखानों व बाजारों पर निर्भर होना पड़ता है, साथ ही खाद की कभी-कभी अनुपलब्धता या ऊँची कीमत या व्यावसायियों की मुनाफाखोरी का भी शिकार होना पड़ता है।
९. कार्बनिक खाद का उपयोग किये जाने से उसके प्राप्त होने वाले स्रोतों, जैसे- बागवानी, पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन, रेशम कीट पालन, मधुमक्खी पालन और इन पर आधारित विभिन्न रोजगारों को भी बढ़ावा मिलता है, जिससे कृषि-जीवन में आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ भौगोलिक एवं पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहता है। इसके विपरीत अकार्बनिक खाद के प्रयोग से उपरोक्त उद्यम-रोजगारों की कमी होती है, कृषक जीवन परावलम्बी बनता है, बेरोजगारी बढ़ती है और पर्यावरणीय असंतुलन भी उपस्थित होता है।
१०. कार्बनिक खाद के प्रयोग से अनुपजाऊ मिट्टी को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है, जबकि अकार्बनिक खाद के कुछ वर्षों तक नियमित प्रयोग होते रहने से उपजाऊ मिट्टी भी अनुपजाऊ या बंजर हो जाती है।
११. कार्बनिक खाद मिट्टी एवं पर्यावरण में जैविकीय संतुलन कायम रखता है, कीटों की प्रतिरोधी क्षमता या उनकी प्रजाति में वृद्धि अथवा पुराने कीटों का पुनरुत्थान नहीं होने देता जबकि अकार्बनिक खाद में ये गुण नहीं होते। कार्बनिक खाद के उपयोग से फसल एवं पौधों के लिए आवश्यक जीवाणुओं की वृद्धि तथा उपयोगी कीटों-मधुमक्खी वगैरह को संरक्षण मिलता है, जबकि अकार्बनिक खाद उन्हें नष्ट करते हैं।
१२. कार्बनिक खाद से भूमिगत जल, मृदा, ऊपरी जल, वायु एवं उत्पादित पदार्थ प्रदूषित नहीं होते, बल्कि उसमें शुद्धता एवं पौष्टिकता आती है, जबकि अकार्बनिक खाद से सब कुछ प्रदूषित होता है, शुद्धता नष्ट होती है और पोषक तत्त्व की कमी होती है।
१३. कार्बनिक खाद का उपयोग बढ़ने से उन कल-कारखानों को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिनमें अकार्बनिक खाद बनाये जाते हैं और जिनसे बड़े पैमाने पर निकलने वाले जहरीले धुएँ तथा अपशिष्ट पदार्थों (मलवों) के कारण दिन-प्रतिदिन पर्यावरण संकट बढ़ते जा रहे हैं और जिनसे तमाम लोग मौत के शिकार होते हैं।

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