शनिवार, 9 अगस्त 2008

फसलों पर ग्रीन हाउस का असर


जलवायु परिवर्तन का असर
करोड़ों लोगोें भोजन के लिए पौधों पर ही आश्रित रहते हैं।
जलवायु परिवर्तन का एक असर यह भी देखा जा रहा है कि फसलं अब कम पौष्टिक होती जा रही हैं। यह निष्कर्ष उन 40 अध्ययनों के विश्लेषण से निकला है जो वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ने से फसलों पर होने वाले असर को देखने के लिए किए गए थे।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बाढ़ों में तो बढ़ोतरी हुई ही है, साथ ही अनावृष्टि व सूखे की परेशानियां भी बढ़ी हैं। इसके कारण गरीब देशों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। ऊपर से यदि फसलों की पौष्टिकता कम होती है तो गरीब देशों के लोगों पर दोहरी मार पडेग़ी।
पूर्व में किए प्रयोगों के आंकड़ों में बहुत विविधता थी और उनके आधार पर निर्णायक तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल था। अब इस तरह के प्रयोग करने की पई तकनीकें विकसित हुई हैं और ज्यादा विश्वसनीय परिणाम मिलने लगे हैं। इन प्रयोगों में यह देखा जा रहा है कि वायुमंडल में गैसों की मात्राएं घटने-बढ़ने से फसल की उपज और गुणवत्ता पर क्या असर होते हैं। डेनियल टॉब और उनके साथियों ने मिलकर करीब दो दशकों के शोध कार्य के आधार पर कुछ डरावने परिणाम प्रस्तुत किए हैं। इससे पता चलता है कि जब कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा अधिक रहती है तब गेहूं, बाजरा, चावल और आलू में प्रोटीन का स्तर लगभग 15 प्रतिशत कम हो जाता है। इस बदलाव का कारण यह है कि जब पौधों को कार्बन की ज्यादा मात्रा मिलती है तब वे प्रोटीन की जगह ज्यादा कार्बोहाइडे्रट बनाने लगते हैं। फसलों में प्रोटीन घटने का ज्यादा असर विकासशील देशों के लोगों के पोषण पर होगा। संपन्न राष्ट्रों के लोग तो प्रोटीन की पूर्ति मांस-मछली के उपभोग से करते हैं, लेकिन लगभग 30 गरीब राष्ट्रों के लोग प्रोटीन के लिए फसलों पर ही निर्भर करते हैं। जैसे बांग्लादेश के करीब 80 प्रतिशत लोग प्रोटीन के लिए फसलों पर निर्भर हैं।
टॉब ने जो निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैँ उनसे लगता है कि पौधों के प्रोटीन स्तर पर नाटकीय ढंग से प्रभ्ज्ञाव पडेग़ा। मगर वास्तव में क्या होगा हम नहीं जानते क्योंकि टॉब ने कार्बन डाईऑक्साइड की जिस मात्रा पर उक्त प्रयोग किए हैं, वह आज की तुलना में दुगनी ली गई थी। यह स्थिति वास्तव में शायद कभी नहीं आएगी। इसके अलावा पौधों में प्रोटीन के स्तर को अच्छे कृषि प्रबंधन द्वारा बढ़ाया जा सकता है। जैसे वनस्पति विज्ञानी अरनॉल्ड ब्लूम का कहना है कि मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ाने पर पौधों में प्रोटीन के स्तर भी बढेग़ा।

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