रविवार, 3 अगस्त 2008

गंगा से पंगा

विकास के लिए गंगा को उसके उद्गम स्थल पर ही बांधने वाली परियोजनाओं के खिलाफ देश के कई हिस्सों में गुस्से का इजहार हुआ है। आस्थावानों की नजर में यह देश की सांस्कृतिक धारा से छेड़छाड़ है, जिसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, वहीं पर्यावरण प्रेमियों ने इसे पारिस्थितिकी से खतरनाक खिलवाड़ करार दिया है। पर्यावरणविद जेडी अग्रवाल के आमरण अनशन ने खास तौर पर इस मुद्दे की आ॓र सबका ध्यान दिलाया है। गंगा को बचाने की तमाम योजनाओं और उससे जुड़े सरोकारों को रेखांकित करता इस बार का हस्तक्षेप-

प्रवीण झा
अपने उद्गमस्थल गोमुख (उत्तराखंड) से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा समुद्रतल से गोमुख की 7,010 मीटर ऊंचाई से चलकर बंगाल की खाड़ी तक 2,525 किलोमीटर की यात्रा तय कर सागर में अपना अस्तित्व विलीन कर देती है। देवप्रयाग तक गंगा भागीरथी के नाम से जानी जाती है। देव प्रयाग में अलकनन्दा, मंदाकिनी के संगम के बाद ही भागीरथी गंगा कहलाती है। यहीं से गंगा का जलस्तर बढ़ जाता है। पर्यावरण वैज्ञानिक डा. रितेश जोशी बताते हैं कि विगत वर्षों के आंकड़े गवाह हैं कि गंगा के किनारे करीब 100 शहर व कस्बे बसे हैं। इनमें उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में 26, बिहार में 15 एवं 59 शहर या कस्बे पश्चिमी बंगाल में हैं। इनमें आधे नगरों की आबादी एक लाख से ऊपर है। देश की सिंचित भूमि का लगभग 43 प्रतिशत भूभाग गंगा से ही सिंचित होता है। लेकिन गंगा किनारे नगरों का प्रदूषित जल व कचरा गंगा में बहाए जाने से गंगा जैसे-जैसे अपने प्रवाह मार्ग पर आगे बढ़ती है और अधिक प्रदूषित होती जाती है।
गंगाजल की गुणवत्ता बरकरार रखने व उचित प्रबंधन के लिए भारत सरकार ने 1985-86 में केंद्रीय गंगा प्राधिकरण का गठन किया। उक्त प्राधिकरण के तहत मुख्य रूप से गंगा किनारे के कई शहरों में एसटीपी के साथ ही गंगाजल परीक्षण का कार्य किया जा रहा है। वर्तमान में प्राधिकरण ‘गंगा एक्शन प्लान’ के नाम से काम कर रहा है। कर्ई नगरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित तो हुए लेकिन इनकी जलशोधन क्षमता कम होने के कारण अब भी बिना शोधत हुआ सीवर का सैकड़ों एमएलडी पानी सीधे गंगा में ही बहाया जा रहा है। डा. जोशी बताते हैं कि नदियों पर बांध बनाकर विघुत उत्पादन करना बुरा नहीं है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि पर्यावरण संतुलन भी बना रहे। उन्होंने कहा कि फिलहाल उत्तराखंड में कई प्रमुख विघुत परियोजनाएं कार्यरत हैं। इन परियोजनाओं में तपोवन-विष्णुगाड़, मनेरी भाली, टीएचडीसी, चीला आदि शामिल हैं। बांध में बंधे जल को पुन:उसके प्राकृतिक प्रवाह मार्ग पर छोड़ने से बहाव की रफ्तार, खनिज टकराव की प्रक्रिया से गुजरते हुए पानी अपनी गुणवत्ता को रिजनरेट कर लेता है, बावजूद इसके गुणवत्ता प्रभावित होती ही है। यही नहीं बांधों के कारण कई प्रकार की मछलियों का अस्तित्व भी संकटमय हो जाता है जो अपने प्राकृत आवास से हजारों मील दूर जाकर प्रजनन करती हैं। उत्तराखंड में पाई जाने वाली महाशीर मछली भी इस समय संकटापन्न है।
जिला मत्स्य अधिकारी एचके पुरोहित ने बताया कि गंगा पर बांध बनने से रूके पानी से महाशीर जैसी मछली की ब्रिडिंग व फीडिंग प्रभावित हो सकती है। उन्होंने बताया कि रूके पानी में प्राय: आक्सीजन की मात्रा कम होकर पानी का तापमान बढ़ जाता है। ग्लोबल टेस्टिंग एंड रिसर्च सेंटर के प्रशिक्षु वैज्ञानिक डा. कमल किशोर ने बताया कि त्योहारों व विभिन्न स्नान पर्वों पर गंगा का प्रदूषण स्तर सामान्य से दोगुना देखा गया है। सामान्यत:गंगाजल की बॉयोलोजिकल आक्सीजन डिमांड 0.29 के आसपास रहती है जबकि प्रदूषण अधिक होने पर यह 6.5 के आसपास मापी गई है।

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