सोमवार, 25 अगस्त 2008

नीम-निषेचित यौगिक

कीटनाशक रूप में नीम का प्रयोग भारत तथा पड़ोसी देशों में सदियों से होता रहा है। विगत तीन-चार दशकों से रासायनिक कीटनाशकों के व्यापक प्रचलन में आने के कारण नीम का परम्परागत घरेलू उपयोग धीरे-धीरे कम हो गया या उसे भुला दिया गया। लेकिन रासायनिक कीटनाशकों के दुष्प्रभाव लक्षित होने के साथ वैकल्पिक साधनों की खोज-प्रक्रिया में नीम वृक्ष एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत के रूप में पुन: सामने आया है। प्रकृति की ओर लौटने का यह वैज्ञानिक अभियान निश्चय ही मानवता के लिए एक शुभ संकेत है। विगत ४०-५० वर्षों में नीम पर हुए वैज्ञानिक अनुसंधान तथा प्रयोगिक परीक्षणों में नीम का हर भाग जैवकीय रूप से सक्रिय पाया गया है। इससे अब तक १०० से अधिक यौगिकों का निषेचन किया गया है, जिसमें कीटनाशी एवं औषधीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण गुण पाये गये हैं। कीटनाशी रूप में निषेचित यौगिकों में एजाडिरोन, एजाडिराडियन, निम्बोसिलान, निम्बिनिन, निमोसिनोलाइड, जेडुनिन, निम्बिन, निमोलाइड, स्लालिन, स्लानॉल, निम्बाडिनाल, निम्बिनिन,निमोलेटक्न, एजाडिरेक्टिन आदि प्रमुख हैं, जो नीम के छाल, बीज, तेल तथा पत्तों से विभिन्न केमिकल्स के साथ निषेचित किये गये हैं। इन यौगिकों में सर्वाधिक प्रभावकारी, जैसा कि जर्मन वैज्ञानिकों का मानना है, एजाडिरेक्टिन है। इसके गुण निम्बिन (१९४२), सलालीन (१९६८) तथा निम्बिलाइड (१९७०) तथा कुछ अन्य यौगिकों से मिलते-जुलते हैं।
विगत लगभग दो दशकों से 'एजाडिरेक्टिन' विशेष चर्चा में है। इसकी खोज में लगभग २५ वर्ष लगे हैं। इस यौगिक का अपरिष्कृत रूप सबसे पहले १९६८ में डी.जी. मार्गेन नामक वैज्ञानिक के नेतृत्व में खोजा गया। आगे १९८२ में जर्मन वैज्ञानिक डॉ. हेनरिख शम्युट्टरर तथा १९८७ में अरमेल नामक वैज्ञानिक इसका कुछ परिष्कृत रूप सामने लाये। अब भी यह पूर्ण शुद्ध रूप में प्राप्य नहीं है, लेकिन बताया जाता है कि जो कुछ प्राप्त है, उसकी थोड़ी सी मात्रा भी तमाम कीड़ों के लिए अत्यन्त घातक है। विभिन्न देशों में नीम बीजों में इस यौगिक की मात्रा अलग-अलग प्राप्त होती है। भारतीय नीम बीज सर्वोत्तम पाया गया है। इस देश के एक किलो नीम बीज से ५ से ६ ग्राम तक यह यौगिक प्राप्त होता है। एजाडिरैक्टिन के अलावे सलालीन तथा मेलियाकार्पिन भी अत्यन्त प्रभावकारी कीटनाशक यौगिक बताये गये हैं। वस्तुत: एजाडिरेक्टिन, एजाडिरैक्टाल तथा मेलियाकार्पिन, इन तीनों यौगिकों का संयुक्त नाम एजाडिरैक्टिन है। यह मुख्यत: दो प्रकार से काम करता है-(Insect antifeedant) तथा (Insect grwoth inhibitor) के रूप में। अर्थात् यह न तो कीड़ों को फसलों का नुकसान करने की अनुमति देगा और न कीड़ों के विकास को बढ़ने देगा। यह उनके लिए विकर्षक रूप में काम करता है और पादपों के हार्मोन को संतुलित रखता है। यह विभिन्न कीटों के लारवों (डिंभकों) के रूपान्तरण प्रक्रिया को विखण्डित कर रोगाणुओं को बढ़ने से रोकता है।

Issues