रविवार, 10 अगस्त 2008

जरुरी है गंगा को बचाना - राजेंद्र सिंह

हिमालय के शिखर गोमुख से निकलकर बंगाल की खाड़ी में मिलने वाली गंगा भारतवासियों के लिए धार्मिक एकता, श्रद्धा, सनातन महत्व, आध्यात्मिक और पतितपावनी के रूप में पूज्य है. इसमें दो राय नहीं कि इसके तट पर हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ है.

यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो गंगा क्षेत्र में रहने वाली करीब 35 करोड़ की आबादी अपने जीवन के लिए गंगा पर निर्भर रहती है. यही कारण है कि गंगा को सभी धर्मो में भारत की भाग्य रेखा भी कहा गया है.
राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य जैसा संरक्षण गंगा को मिलना चाहिए. इस हेतु गंगा संरक्षण कानून बने, गंगा में गिरने वाले सभी गंदे नाले, मल-मूत्र और औद्योगिक प्रदूषण को तुरंत प्रभाव से रोका जाए. गंगा संरक्षण हेतु राष्ट्रीय गंगा आयोग गठित किया जाए. गंगा का शोषण किसी भी रूप में नहीं किया जाए. इसमें चल रहा खनन, भूजल, शोषण आदि सब पर रोक लगाई जाए.
वर्तमान में स्थिति यह है कि पिछले कुछ दशकों से विकास की अंधी दौड़ में गंगा के उद्गम क्षेत्र से लेकर पूरे गंगा क्षेत्र में किए गए अवांछनीय परिवर्तनों ने संपूर्ण गंगा के ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. इस ओर यदि अविलंब ध्यान नहीं दिया गया तो पूरी गंगा सूख जाएगी और गंगा के प्रवाह क्षेत्र में रहने वाली करीब 35 करोड़ की आबादी का जीवन और भारत की अस्मिता खतरे में पड़ जाएगी.
आज जो हाल गंगा का है, वही हाल अन्य नदियों का भी है. इस लिहाज से जल संसाधनों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार तो सभी जगह आवश्यक है. गंगा रक्षा के लिए समय-समय पर समाज, राज एवं संतों ने मिलकर काम किया है. नतीजतन भारत के किसानों, मछुआरों, पुजारियों, पंडों, ब्राrाणों सभी की यह जीवन रेखा बनी रही है. इसने भारत की एकता, अखंडता और संस्कृति को बनाकर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
आज इस पर गहरा संकट है. स्थिति यह है कि अतिक्रमण, प्रदूषण और भूजल के शोषण ने गंगा की हत्या कर दी है. हम चाहते हैं कि गंगा नैसर्गिक रूप में सदानीरा बहती रहे. इसके लिए सर्वप्रथम तो गंगा नदी को एक राष्ट्रीय नदी के रूप में घोषित किया जाए और जिस तरह से राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार गंगा को सम्मान एवं सुरक्षा प्रदान की जाए.
गंगा की पवित्रता और अविरलता को बनाए रखने हेतु इस पर विकास के नाम पर हो रहे विनाश को रोकना अतिआवश्यक है. इससे भी पहले आवश्यक यह है कि गंगा के ऊपरी हिस्से में किसी भी तरह की छेड़छाड़ न की जाए. उत्तराखंड में गंगा की जो धाराएं हैं वह उसकी बाल्यकाल और किशोर अवस्था है. नदियों से ऐसी स्थिति में छेड़छाड़ करना उनकी हत्या के समान है.
आज गंगा को समूल नष्ट किए जाने की खातिर उत्तराखंड में ऊर्जा के नाम पर नदियों पर 10,000 मेगावाट बिजली बनाने के लिए बांध, बैराज और सुरंग बनाई जा रही है जबकि असलियत में उत्तराखंड राज्य की 2008 में अपनी बिजली की कुल खपत 737 मेगावाट है. यदि दूसरे राज्यों को दी जाने वाली बिजली को जोड़कर देखा जाए तो ऊर्जा की कुल खपत 1500 मेगावाट बनती है.
वर्ष 2022 तक इस राज्य की ऊर्जा की कुल खपत बढ़कर 2849 मेगावाट होगी. इतनी बिजली इस राज्य में नदियों के नैसर्गिक प्रवाह को बनाए रखते हुए भी बनाई जा सकती है. फिर इस राज्य में गंगा के साथ ऐसी छेड़छाड़ क्यों हो रही है. यह समझ से बाहर है और विडंबना यह है कि इसका उत्तर सरकार के पास भी नहीं है.
इस समय जो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं उनमें पहला यह है कि भागीरथी गंगोत्री से उत्तर काशी तक अपने नैसर्गिक स्वरूप में बहे. गंगा व अन्य नदियों के उद्गम से अंतिम छोर तथा उनके प्रवाह स्थिति का एक समय सीमा के अंतर विस्तृत अध्ययन और इन जल स्रोतों के स्वाभाविक प्रभाव व शुद्धता को संरक्षित करने संबंधी नीति बने. इसके अलावा गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी घोषित किया जाए.
राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य जैसा संरक्षण गंगा को मिलना चाहिए. इस हेतु गंगा संरक्षण कानून बने, गंगा में गिरने वाले सभी गंदे नाले, मल-मूत्र और औद्योगिक प्रदूषण को तुरंत प्रभाव से रोका जाए. गंगा संरक्षण हेतु राष्ट्रीय गंगा आयोग गठित किया जाए. गंगा का शोषण किसी भी रूप में नहीं किया जाए. इसमें चल रहा खनन, भूजल, शोषण आदि सब पर रोक लगाई जाए. गंगा की भूमि का उपयोग किसी भी दूसरे काम में नहीं किया जाए.
इसके लिए भारत में एक प्रभावी नदी नीति का होना बहुत जरूरी है. गंगा के जल-प्रवाह को अविरल व निर्मल सुनिश्चित किया जाए. ऐसी व्यवस्था सभी संबंधित राज्य सरकारों को करना जरूरी है. इस हेतु प्रत्येक राज्य में नदी नीति बने.
हिमालय से गंगा सागर तक बहने वाली गंगा से जुड़ी सभी नदियों को पवित्र गंगा ही मानकर इनका नैसर्गिक प्रवाह सुनिश्चित किया जाए. गंगा के प्रवाह में बाधक सभी संरचनाओं को हटाया जाए. पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ 1916 में गंगा प्रवाह के संबंध में हुए समझौते को लागू किया जाए और गंगा संरक्षण हेतु एक स्वतंत्र पर्यावरण सामाजिक वैज्ञानिक की अध्यक्षता में भारत सरकार गंगा आयोग का गठन करें.
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